1922 में असहयोग आंदोलन की वापसी से निराश और 1917 की रूसी क्रांति से प्रेरित युवाओं ने पुनः क्रांति का मार्ग चुना।
- हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA):
- इसकी स्थापना अक्टूबर 1924 में कानपुर में हुई।
- संस्थापक सदस्य: शचींद्रनाथ सान्याल, राम प्रसाद बिस्मिल, योगेश चटर्जी, चंद्रशेखर आजाद आदि।
- काकोरी कांड (9 अगस्त, 1925):
- HRA के क्रांतिकारियों ने सहारनपुर से लखनऊ जा रही 8-डाउन ट्रेन को काकोरी नामक स्थान पर सफलतापूर्वक लूट लिया।
- इस कांड के आरोप में राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खाँ, राजेन्द्र लाहिड़ी तथा रोशन सिंह को दिसंबर 1927 में फाँसी दे दी गई।
- चंद्रशेखर आजाद इस कांड से बच निकलने में सफल रहे।
- हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA):
- सितंबर 1928 में दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में HRA का नाम बदलकर HSRA कर दिया गया।
- इसमें 'सोशलिस्ट' शब्द भगत सिंह के प्रभाव के कारण जोड़ा गया, जिसका उद्देश्य भारत में एक समाजवादी गणतंत्रवादी राज्य की स्थापना करना था।
- लाहौर षड्यंत्र केस (सॉण्डर्स की हत्या, 17 दिसंबर, 1928):
- 30 अक्टूबर, 1928 को साइमन कमीशन के विरोध के दौरान पुलिस अधीक्षक स्कॉट के आदेश पर हुए लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हुए और बाद में उनकी मृत्यु हो गई।
- इसका बदला लेने के लिए भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु और सुखदेव ने स्कॉट की हत्या की योजना बनाई, लेकिन गलती से सहायक पुलिस अधीक्षक सॉण्डर्स की हत्या कर दी।
- सेंट्रल असेंबली बम कांड (8 अप्रैल, 1929):
- पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल के विरोध में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली में सेंट्रल असेंबली में बम फेंका।
- उनका उद्देश्य किसी को मारना नहीं, बल्कि "बहरी सरकार को सुनाना" था। यहीं पर उन्होंने "इंकलाब जिंदाबाद" का नारा बुलंद किया और पर्चे फेंके।
- ऐतिहासिक भूख हड़ताल और शहादत:
- लाहौर षड्यंत्र केस में गिरफ्तार क्रांतिकारियों ने जेल में राजनीतिक बंदी का दर्जा पाने और अमानवीय परिस्थितियों के विरोध में भूख हड़ताल की।
- जतिन दास 64 दिनों की ऐतिहासिक भूख हड़ताल के बाद शहीद हो गए।
- लाहौर षड्यंत्र केस के आरोप में 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को लाहौर सेंट्रल जेल में फाँसी दे दी गई।
- 27 फरवरी, 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क (अब आजाद पार्क) में पुलिस से मुठभेड़ के दौरान चंद्रशेखर आजाद ने अंतिम गोली से स्वयं को मारकर शहादत प्राप्त की।
✊ भगवती चरण वोहरा ने चंद्रशेखर आजाद के कहने पर 'द फिलॉसफी ऑफ द बम' नामक प्रसिद्ध लेख लिखा था, जो क्रांतिकारियों के विचारों को स्पष्ट करता था।